आखिर क्या है अक्षय तृतीया का पावन पर्व का विशेष महत्व

भूमिका:

नमस्कार साथियों जैसा कि आप जानते है भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है। हर त्योहार न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा होता है, बल्कि उसके पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक या आध्यात्मिक कारण भी होता है। ऐसे ही एक पावन और शुभ दिन का नाम है अक्षय तृतीया। यह पर्व वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इसे ‘अक्ती’ या ‘अक्खा तीज’ भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को शुभ कार्यों के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है, अर्थात इस दिन किसी भी कार्य के लिए विशेष मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।

अक्षय तृतीया का अर्थ:

‘अक्षय’ का अर्थ है – जिसका कभी क्षय न हो, अर्थात जो कभी समाप्त न हो। तृतीया का अर्थ है – तीसरा दिन। इस प्रकार यह पर्व ऐसी तिथि को मनाया जाता है, जब की गई पूजा, दान, जप-तप, स्नान आदि का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। यह दिन धन, समृद्धि, सुख-शांति और सफलता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

पौराणिक मान्यताएँ:

अक्षय तृतीया से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जो इस दिन की महत्ता को दर्शाती हैं:

1. भगवान परशुराम का जन्म:

यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी जाना जाता है।

2. महाभारत से संबंध:

मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया था, जिससे उन्हें कभी भोजन की कमी नहीं हुई। यह पात्र द्रौपदी की प्रार्थना पर दिया गया था, जिससे कोई भी भूखा न रहे।

3. गंगा अवतरण:

यह भी माना जाता है कि माँ गंगा का धरती पर इसी दिन अवतरण हुआ था। इस कारण इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।

4. त्रेता युग की शुरुआत:

कुछ मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही त्रेता युग का आरंभ हुआ था, जिसमें भगवान राम का अवतार हुआ था।

धार्मिक और सामाजिक महत्व:

अक्षय तृतीया केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग स्वर्ण आभूषण, भूमि, वाहन, और नया व्यापार आरंभ करना शुभ मानते हैं। विवाह, गृह प्रवेश, नई खेती या व्यापार आरंभ करने जैसे कार्य इस दिन बिना मुहूर्त के किए जाते हैं। इसे अबूझ मुहूर्त कहा जाता है।

दान-पुण्य की परंपरा:

अक्षय तृतीया के दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और वह पुण्य कभी क्षीण नहीं होता। इस दिन विशेष रूप से जल से भरे घड़े, छाता, जूते, वस्त्र, अन्न, स्वर्ण, चांदी, गाय, तिल, घी आदि का दान किया जाता है। यह मान्यता है कि जो इस दिन भूखे को अन्न देता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

स्वर्ण खरीदने की परंपरा:

इस दिन स्वर्ण खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु कभी नष्ट नहीं होती और उसमें हमेशा वृद्धि होती है। यही कारण है कि ज्वेलर्स के लिए यह दिन सबसे व्यस्त होता है। लोग नए गहनों की खरीदारी करते हैं।

विवाह का शुभ समय:

अक्षय तृतीया को विवाह के लिए सर्वोत्तम दिन माना जाता है। विशेषकर ग्रामीण और पारंपरिक समाजों में इस दिन हजारों शादियाँ होती हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि इस दिन किसी भी प्रकार के पंचांग या मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती।

अध्यात्मिक महत्व:

अक्षय तृतीया आत्म-उन्नति का भी प्रतीक है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, और आध्यात्मिक साधना में लीन रहते हैं। जप, तप, ध्यान, भगवद गीता या रामायण का पाठ इस दिन विशेष पुण्य प्रदान करता है।

आधुनिक संदर्भ में अक्षय तृतीया:

आज के दौर में भी अक्षय तृतीया का महत्व कम नहीं हुआ है। भले ही लोग अब धार्मिक भावनाओं के साथ-साथ व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी इस दिन की ओर देखते हैं, लेकिन इसके मूल मूल्यों की महत्ता बनी हुई है। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स और मार्केटिंग कंपनियाँ इस दिन को “गोल्ड डे” या “शुभ निवेश दिवस” के रूप में प्रचारित करती हैं, जिससे इसकी सामाजिक पहचान और मजबूत हो रही है।

पर्यावरण से जुड़ाव:

कुछ लोग इस दिन वृक्षारोपण करते हैं और जल स्रोतों की सफाई करते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह एक शुभ आरंभ हो सकता है। साथ ही गाय को चारा देना, पक्षियों को जल और अन्न देना, भी पुण्य का कार्य माना जाता है।

उपसंहार:

अक्षय तृतीया केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि यह जीवन में स्थायित्व, संतुलन, समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि जीवन में अच्छे कार्यों की शुरुआत कभी न रुकने वाली सफलता की ओर ले जाती है। दान, धर्म, सेवा, और सदाचार का मार्ग अपनाकर हम अपने जीवन को भी “अक्षय” बना सकते हैं।

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